दोस्तो में आज आप को ऐसे गाव के बारें
में बाताने वाला हू जिसका नाम कुलधारा है. यह कहाणी है एक शाप कि यह कहाणी है एक लडकी कि ओर यह कहाणी है
पालीवाल ब्राम्ह्णो कि. कुलधारा एक ऐसा गाव है जो एक शाप के
कारण रातोरात उजड गया ओर आज तक नही बस सका. कुलधारा गाव जैसलमेर से करीब १४
किलोमीटर दूर है. इस गाव को पालीवाल ब्राम्हण समाज ने सरस्वती नदी के किनारे
बसाया था. तब
खुशीओसे भरपूर होनेवाला गाव आज विराण है. आज ये गाव विरान पडा है. शाम होणे के बाद यहा
कोई नही जाता. ऐसा क्या हुआ था इस गाव में कि आज तक नही बस सका कुलधारा गाव
तो चलिये देखते है कुलधारा कि कहाणी
सन १८२५ में जैसलमेर पर राजपूत सामंत सरदार राज करते थे. ओर उस राज्य का दिवान सलीम सिंह था. सलीम सिंह कुलधारा के मुखिया कि बेहद खुबसुरत बेटी के प्यार में पद गया. ओ उससे शादी करणा चाहता था. लेकिन मुखिया अपनी बेटी कि शादी उससे नही करणा चाहते थे. इस वजह से सलीम सिंह भारी मात्र में कर लागणे कि धमकी गाव वालो को देणे लागा इस कारण पालीवाल ब्राम्हनओने रक्षा बंधन के दिन हि आसपास के ८४ गाव के लोगो ने साथ देते हुये गाव रातोरात खाली कर दिया ओर दुसरी जगह चाले गये. ओर जाते जाते कुलधारा गाव को शाप देते गये कि ये गाव फिर कभी नही बस सकेगा ओर ब्राम्हण तो चले गये लेकिन आज भी उनके शाप का असर है आज भी रात होणे के बाद वहा कोई नही जाता. वाहा के मकान आज भी विरान पडे है कुलधारा गाव को भूतो का गाव नाम से भी जाना जाता है पालीवाल ब्रह्मणो के जाने के बाद से ये गाव रुहानी ताकतों के कब्जे में है वक्त के साथ साथ ८२ गाव दोबारा बस सके लेकिन दो गाव तमाम कोशिशोके बाद भी नही बस सके ओह है कुलधारा ओर दुसरा है खबा अब ये दोनो गाव भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है.
रात में कुलधारा ग में अजीबअजीब सी आवाजे सुनी देती है जो पालीवाल ब्रह्मणो के दर्द कि कहाणी बयान करती है गांव के कुछ मकान हैं, जहां रहस्यमय परछाई अक्सर नजरों के सामने आ जाती है। दिन की रोशनी में सबकुछ इतिहास की किसी कहानी जैसा लगता है, लेकिन शाम ढलते ही कुलधरा के दरवाजे बंद हो जाते हैं और दिखाई होता है रूहानी ताकतों का एक रहस्यमय संसार। लोग कहते हैं, कि रात के वक्त यहां जो भी आया वो हादसे की शिकार हो गया।कुछ वक्त पहले कुलधरा के रहस्य की पड़ताल करने वाली एक टीम भी ऐसे ही हादसे का शिकार हुई थी शाम के वक्त उनका ड्रोन कैमरा आसमान से गांव की तस्वीरें ले रहा था लेकिन उस बावड़ी के ऊपर आते ही वो कैमरा हवा में गोते लगाता हुआ जमीन पर आ गिरा। जैसे कोई था, जिसे वो कैमरा मंजूर न हो। ये सच है कि कुलधरा से हजारों परिवारों का पलायन हुआ, ये भी सच है कि कुलधरा में आज भी राजस्थानी संस्कृति की झलक मिलती हैं। राजस्थान पुरातत्व विभाग के दस्तावेज़ भी शर्मा के कथन की पुष्टि करते हुए प्रतीत होते हैं, “कालचक्र का एक और प्रतिकूल दौर आया और ब्राह्मण समाज को तत्कालीन जैसलमेर रियासत से मजबूर होकर अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए सन 1825 में सभी आबाद गांवों को एक ही दिन में छोड़ना पड़ा.”
सन १८२५ में जैसलमेर पर राजपूत सामंत सरदार राज करते थे. ओर उस राज्य का दिवान सलीम सिंह था. सलीम सिंह कुलधारा के मुखिया कि बेहद खुबसुरत बेटी के प्यार में पद गया. ओ उससे शादी करणा चाहता था. लेकिन मुखिया अपनी बेटी कि शादी उससे नही करणा चाहते थे. इस वजह से सलीम सिंह भारी मात्र में कर लागणे कि धमकी गाव वालो को देणे लागा इस कारण पालीवाल ब्राम्हनओने रक्षा बंधन के दिन हि आसपास के ८४ गाव के लोगो ने साथ देते हुये गाव रातोरात खाली कर दिया ओर दुसरी जगह चाले गये. ओर जाते जाते कुलधारा गाव को शाप देते गये कि ये गाव फिर कभी नही बस सकेगा ओर ब्राम्हण तो चले गये लेकिन आज भी उनके शाप का असर है आज भी रात होणे के बाद वहा कोई नही जाता. वाहा के मकान आज भी विरान पडे है कुलधारा गाव को भूतो का गाव नाम से भी जाना जाता है पालीवाल ब्रह्मणो के जाने के बाद से ये गाव रुहानी ताकतों के कब्जे में है वक्त के साथ साथ ८२ गाव दोबारा बस सके लेकिन दो गाव तमाम कोशिशोके बाद भी नही बस सके ओह है कुलधारा ओर दुसरा है खबा अब ये दोनो गाव भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है.
रात में कुलधारा ग में अजीबअजीब सी आवाजे सुनी देती है जो पालीवाल ब्रह्मणो के दर्द कि कहाणी बयान करती है गांव के कुछ मकान हैं, जहां रहस्यमय परछाई अक्सर नजरों के सामने आ जाती है। दिन की रोशनी में सबकुछ इतिहास की किसी कहानी जैसा लगता है, लेकिन शाम ढलते ही कुलधरा के दरवाजे बंद हो जाते हैं और दिखाई होता है रूहानी ताकतों का एक रहस्यमय संसार। लोग कहते हैं, कि रात के वक्त यहां जो भी आया वो हादसे की शिकार हो गया।कुछ वक्त पहले कुलधरा के रहस्य की पड़ताल करने वाली एक टीम भी ऐसे ही हादसे का शिकार हुई थी शाम के वक्त उनका ड्रोन कैमरा आसमान से गांव की तस्वीरें ले रहा था लेकिन उस बावड़ी के ऊपर आते ही वो कैमरा हवा में गोते लगाता हुआ जमीन पर आ गिरा। जैसे कोई था, जिसे वो कैमरा मंजूर न हो। ये सच है कि कुलधरा से हजारों परिवारों का पलायन हुआ, ये भी सच है कि कुलधरा में आज भी राजस्थानी संस्कृति की झलक मिलती हैं। राजस्थान पुरातत्व विभाग के दस्तावेज़ भी शर्मा के कथन की पुष्टि करते हुए प्रतीत होते हैं, “कालचक्र का एक और प्रतिकूल दौर आया और ब्राह्मण समाज को तत्कालीन जैसलमेर रियासत से मजबूर होकर अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए सन 1825 में सभी आबाद गांवों को एक ही दिन में छोड़ना पड़ा.”
स्वाभिमान की रक्षा
के लिए सन 1825 में सभी आबाद गांवों को एक ही दिन में छोड़ना पड़ा.”
ऐसा माना जाता है की पालीवाल जैसलमेर से निकलकर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश
और महाराष्ट्र में बस गए. उन्होंने जो गाँव छोड़े उनमें से अधिकतर कुछ नए नामों के
साथ फिर से आबाद हो गए. पारानोर्मल
सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के गौरव तिवारी जो 17 से ज़्यादा बार कुलधरा और खाबा
जा चुके हैं, बताते हैं कि उन्होंने वहां अपने इलेक्ट्रॉनिक
गैजेट्स पर आत्माओं की उपस्थिति दर्ज की. लेकिन जैसलमेर विकास समिति के द्वारपाल
पद्माराम इसका ज़ोरदार खंडन करते हैं. दिल्ली से आई भूत प्रेत व आत्माओं पर रिसर्च करने वाली
पेरानार्मल सोसायटी की टीम ने कुलधरा(Kuldhara) गांव में बिताई रात। टीम ने माना कि
यहां कुछ न कुछ असामान्य जरूर है। टीम के एक सदस्य ने बताया कि विजिट के दौरान रात
में कई बार मैंने महसूस किया कि किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा, जब मुड़कर देखा तो वहां कोई नहीं था। पेरानॉर्मल सोसायटी के
उपाध्यक्ष अंशुल शर्मा ने बताया था कि हमारे पास एक डिवाइस है जिसका नाम गोस्ट
बॉक्स है। इसके माध्यम से हम ऐसी जगहों पर रहने वाली आत्माओं से सवाल पूछते हैं।
कुलधरा में भी ऐसा ही किया जहां कुछ आवाजें आई तो कहीं असामान्य रूप से आत्माओं ने
अपने नाम भी बताए। शनिवार चार मई की रात्रि में जो टीम कुलधरा गई थी उनकी गाडिय़ों
पर बच्चों के हाथ के निशान मिले। टीम के सदस्य जब कुलधरा गांव में घूमकर वापस लौटे
तो उनकी गाडिय़ों के कांच पर बच्चों के पंजे के निशान दिखाई दिए। (जैसा कि कुलधरा(Kuldhara) गई टीम के सदस्यों ने मीडिया को बताया
)
स्थानिक लोगो के अनुसार जब पालीवाल गाँव को छोड़कर जा रहे
थे तब उन्होंने इस जगह पर श्राप भी डाला था की कोई भी दूसरा व्यक्ति इस गाँव पर
कब्ज़ा नही कर सकता। इसके बाद जिन लोगो ने भी यहाँ बसना चाहा उन्हें असाधारण
गतिविधियों का सामना करना पड़ा और इसी वजह से यह गाँव वीरान का वीरान ही रहा।
इसके बाद धीरे-धीरे गाँव ने प्रेतवाधित गाँव के रूप में
अपनी पहचान बना ली और इससे बहुत से पर्यटक इसकी तरफ आकर्षित होने लगे। गाँव के
आस-पास के स्थानिक लोगो का इन प्रेतवाधित कहानियो पर जरा भी भरोसा नही है लेकिन
फिर भी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए वे ऐसी कहानियो का प्रचार-प्रसार करते
रहते है।
2006 में वनस्पति अध्ययन के लिए
सरकार ने यहाँ “जुरैसिक
कैक्टस पार्क” की
स्थापना की।
2010 में भारतीय असाधारण सोसाइटी
के गौरव तिवारी ने इस जगह पर असाधारण गतिविधियों को देखने का दावा भी किया है।
सोसाइटी के 18 सदस्यों के समूह ने 12 दुसरे लोगो के साथ गाँव में
पूरी एक रात गुजारी थी। उन्होंने दावा किया है की उन्हें रात में घुमती हुई परछाई, डरावनी आवाज, बोलती हुई स्त्रियाँ और
दूसरी असाधारण गतिविधियाँ देखने मिली।
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