प्लांचेट: Planchette

प्लांचेट (Planchette)

आत्मवादियों का एक यन्त्र है जो 'स्वतः' लिखता है और ऐसा माना जाता है कि यह दूसरे लोकों के तथाकल्पित 'भूतों' से सन्देश प्राप्त करने के लिये प्रयुक्त होता है। मुख्यतः १९वीं शताब्दी में यह बहुत लोकप्रिय हो चला था।
Planchette

परिचय
यह पान के पत्ते की आकृति का, किंतु उससे बड़े आकार का पतली और हलकी तथा चिकनी लकड़ी का बना हुआ एक यंत्र है। इसमें नोक की ओर पेंसिल फँसाने के लिए एक गोल छेद और पीछे की और नीचे दो पहिए लगे होते हैं। पहियों के द्वारा यह यंत्र ऊपर से थोड़ा सा दबाव और सहारा पाकर चलने लगता है और चलने से पेंसिल द्वारा उस कागज पर जिनके ऊपर वह यंत्र चलता है निशान बनते रहते हैं। सन् १८५३ में इसका आविष्कार एक फ्रांसीसी आत्मवादी ने किया था। जब कोई माध्यम (मीडियम) अपनी चेतना को शरीर से हटाकर किसी मृत प्राणी द्वारा अपने शरीर को क्रियावान् होने दे और प्लांचेट पर अपना हाथ अथवा उँगलियाँ रख दे तो मृत आत्मा उस हाथ के द्वारा प्लांचेट को चलाने लगती है और उसमें लगी हुई पेंसिल द्वारा जो लिखना चाहती है लिख देती है। माध्यम का शरीर और विशेषत: हाथ अपनी आत्मा के नियंत्रण में न रहकर मृत आत्मा के नियंत्रण में कुछ काल के लिए आ जाता है और उसके द्वारा मृत आत्मा जो कुछ जीवित प्राणियों को कहना चाहती है कह देती है।

प्लांचेट हाथ रखने पर कुछ देर पीछे चलने लगता है। उसके द्वारा स्पष्ट अक्षरों में कुछ न कुछ लिखा भी जाता है। प्रश्नों के उत्तर भी लिखे जाते हैं। पर लिखनेवाला वह माध्यम है जिसका हाथ उसपर रखा होता है अथवा उसके द्वारा कोई दूसरी आत्मा लिखती है - इसका निर्णय करना असंभव नहीं तो कठिन जरूर है। जान बूझकर तो माध्यम लोग सदा धोखा नहीं देते। अज्ञात रीति से भले ही वे या उनका हाथ प्लांचेट को चलाता हो। पर इसका कोई प्रमाण नहीं हो सकता कि किसी दूसरी आत्मा द्वारा कुछ लिखा जा रहा है अथवा माध्यम के अचेतन मन अथवा मन के किसी उच्चस्तर द्वारा कुछ लिखा जा रहा है। कभी-कभी ऐती बातें भी लिखी जाती हैं जिनका ज्ञान माध्यम को अपने जीवन में कभी भी नहीं हुआ। इस प्रकार का ज्ञान या तो मृत आत्मा के द्वारा व्यक्त होता है या यह भी संभव है कि माध्यम के अज्ञात मन ने ही अपनी अलौकिक और निहित शक्तियों द्वारा ज्ञान को प्रापत करके किसी मृत अत्मा के बहाने से उसे लेख द्वारा व्यक्त कर दिया हो। अब यह निर्विवाद सिद्ध हो चुका है कि मनुष्य के अज्ञात मन में अनेक अलौकिक शक्तियाँ निहित हैं जो किसी किसी मानसिक अवस्था में प्रकट हो जाती है। अतएव कुछ लोग यह मानते हैं कि प्लांचेट द्वारा वही ज्ञान हमको प्राप्त होता है जो माध्यम के आंतरिक मन को प्राप्त हो गया है।

प्लांचेट पर कभी कभी इतिहास के महान् मृत व्यक्तियों द्वारा भी बहुत सी बातों का लिखा जाना अनुभव में आया है। आश्चर्य होता है कि वे महान् आत्माएँ क्या प्रत्येक जीवित व्यक्ति के इतने समीप हैं और क्या उनको इतना समय मिलता है कि वे जहाँ तहाँ कभी कभी बिना बुलाए पहुँच जाती हैं।

प्लांचेट पर भूत, वर्तमान और भविष्य की बातें लिखी जाती हैं। कभी कभी भविष्यवाणियाँ ठीक भी निकल जाती हैं। कभी कभी जो बात किसी पास बैठनेवालों और माध्यम को भी मालूम नहीं वे भी प्लांचेट पर लिखी जाती है। वास्तव में प्लांचेट एक अद्भुत यंत्र है।

भूत-प्रेत

भूत-प्रेत

भूत-प्रेत लोककथा और संस्कृति में अलौकिक प्राणी होते हैं जो किसी मृतक की आत्मा से बनते हैं। ऐसा माना जाता है कि जिस किसी की मृत्यु से पहले कोई इच्छा पूर्ण नहीं हो पाती और वो पुनर्जन्म के लिये स्वर्ग या नरक नहीं जा पाते वो भूत बन जाते हैं। इसका कारण हिंसक मृत्यु हो सकती है, या मृतक के जीवन में अनिश्चित मामलों होते हैं या उनकी अंत्येष्टि उचित संस्कार से नहीं की गई होती हैं।
bhut pret


भूत-प्रेत में विश्वास पीढ़ियों से भारत के लोगों के दिमाग में गहराई से जुड़ा हुआ है और यह आधुनिक तकनीक और वैज्ञानिक विकास के युग में अभी भी बना हुआ है। भारत में कई कथित तौर पर भूत से पीडित स्थान हैं, जैसे कि जीर्ण इमारतें, शाही मकान, किले, बंगले, घाट आदि। कई फ़िल्मों का निर्माण इसपर किया जा चुका हैं।

काला जादू black magic

काला जादू  black magic

काला जादू

काला जादू पारम्परिक रूप से पराप्राकृतिक शक्तियों अथवा दुष्ट शक्तियों की सहायता से अपने स्वार्थी उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए किया जाने वाला एक जादू है। काला जादू एक ऐसी बुरी शक्ति या बुरी ऊर्जा जो किसी पर बुरा प्रभाव डालती है यह एक प्रकार नकारात्मक दृष्टि है और इस नकारात्मक दृष्टि से बचाने के लिए वास्तुशास्त्र में सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ने के लिए प्रावधान है वास्तुशास्त्र के अनुसार ये सकारात्मक ऊर्जा कला जादू और नकारत्मक ऊर्जा का प्रभाव काम करती है सकारत्मक ऊर्जा को बढ़ाने के लिए वास्तुशास्त्र मे कई प्रकार के प्रावधान भी इंगित है जैसे उदहारण के लिए किसी भी प्रकार के वास्तु दोष को दूर करने के लिए घर की छत या छाजे पर उत्तर पूर्व दिशा में पांच तुलसी के पौधे लगाना चाहिए। अगर पांच नहीं लगा सकते तो कम से कम एक तुलसी का पौधा इस दिशा में जरुर लगाएं। इससे घर में आने वाले नकारात्मक प्रभाव में कमी आती है। वास्तुविज्ञान और वास्तुशास्त्र में विस्तार से बताया गया है बाहर से घर में आने वाले लोग भी कई बार कोई नकारात्मक उर्जा को अपने संग लेकर आते हैं। और वास्तु विज्ञानं के आधार पर जिनके घर के प्रवेश द्वार पर तुलसी का पौधा होता है उनके घर में इस तरह के नकारात्मक उर्जा का प्रवेश नहीं हो पाता है

पिशाच्च क्या हैं. what is Pishaachya


पिशाच कल्पित प्राणी है जो जीवित प्राणियों के जीवन-सार खाकर जीवित रहते हैं आमतौर पर उनका खून पीकर. हालांकि विशिष्ट रूप से इनका वर्णन मरे हुए किन्तु अलौकिक रूप से अनुप्राणित जीवों के रूप में किया गया, कुछ अप्रचलित परम्पराएं विश्वास करती थीं कि पिशाच (रक्त चूषक) जीवित लोग थे।
Pishaachya


लोककथाओं के अनुसार, पिशाच अक्सर अपने प्रियजनों से मिला करते थे और अपने जीवन-काल में जहां वे रहते थे वहां के पड़ोसियों के अनिष्ट अथवा उनकी मृत्यु के कारण बन जाते थे। वे कफ़न पहनते थे और उनके बारे में अक्सर यह कहा जाता था कि उनका चेहरा फूला हुआ और लाल या काला हुआ करता था। यह 19वीं सदी के शुरूआती दौर में आरंभ होने वले आधुनिक काल्पनिक पिशाचों के मरियल, कांतिहीन चित्रण से स्पष्ट रूप से भिन्न था। हालांकि पिशाचीय सत्ता अनेक संस्कृतियों में मिलती है फिर भी पिशाच शब्द 18वीं सदी के आरंभ तक लोकप्रिय नहीं हुआ था। पश्चिमी यूरोप में पिशाच के अंधविश्वास का एक अन्तःप्रवाह चला जैसे कि बाल्कन प्रदेशों एवं पूर्वी यूरोप,में जनश्रुतियों में पिशाच की लोककथाएं बार-बार दुहराई जाती रहीं जबकि स्थानीय अंचलों में लोग पिशाच को अलग-अलग नामों से जानते थे, जैसे कि सर्बिया में वैम्पिर (вампир), ग्रीस में राइकोलाकस (vrykolakas) तथा रोमानिया में स्ट्रिगोई (strigoi). यूरोप में पिशाच अंध-विश्वास के बढ़े हुए स्तर से जन उन्माद उत्पन्न हुआ और कुछ मामलों में शवों को दांव पर लगा दिया गया तथा लोगों पर पैशाचिकी का आरोप लगाया जाने लगा।

आजकल पिशाच आमतौर पर कल्पित सत्ता के रूप में समझे जाते हैं, हालांकि कुछ संस्कृतियों में इससे संबंधित प्राणियों जैसे कि 'छुपाकाबरा ' (chupacabra) में लोगों का विश्वास अभी भी कायम है। प्राक् औद्योगिक समाज में मृत्यु के पश्चात् शव के विघटन की प्रक्रिया के संबंध में पिशाचों में आरंभिक लोककथाओं के विश्वास का कारण अज्ञानता को ठहराया गया है। आनुवांशिक असामान्यता को भी 20वीं सदी में लोककथाओं की पैशाचिकी से जोड़ा जाता था जिसे मीडिया ने भरपूर उजागर किया, लेकिन इस कड़ी को उस समय से व्यापक रूप से बदनाम किया गया।

सन् 1819 में जॉन पोलिडोरी कृत रचना द वैम्पायर के प्रकाशन के साथ ही आधुनिक कथा-जगत में करिश्माई और कृत्रिम पिशाच का आविर्भाव हुआ। यह कहानी काफी सफल रही और 19वीं सदी के आरंभ में निर्विवादित रूप से पिशाच पर सबसे सफल प्रभावशाली रचना मानी गई। हालांकि ब्रैम स्टोकर के सन् 1897 में प्रकाशित उपन्यास ड्रैकुला को सर्वोत्तम उपन्यास के रूप में याद किया जाता है जिसने पिशाच कथा-साहित्य की पृष्ठभूमि तैयार की। इस पुस्तक की सफलता ने पुस्तकों, फिल्मों, वीडियो गेम्स और टेलीविज़न शो के जरिए एक विशिष्ट पिशाच शैली को जन्म दिया जो 21वीं सदी में अब भी लोकप्रिय है। अपनी विशिष्ट संत्रास (भय) की शैली में पिशाच एक प्रभावशाली चरित्र है।