भानगड के किले का असली राज


भानगड़ किला सत्रहवीं शताब्‍दी में बनवाया गया था। इस किले का निर्माण मान सिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने करावाया था। राजा माधो सिंह उस समय अकबर के सेना में जनरल के पद पर तैनात थे। उस समय भानगड़ की जनसंख्‍या तकरीबन 10,000 थी। भानगढ़ अल्‍वार जिले में स्थित एक शानदार किला है जो कि बहुत ही विशाल आकार में तैयार किया गया है।
भानगड



  • चारो तरफ से पहाड़ों से घिरे इस किले में बेहतरीन शिल्‍पकलाओ का प्रयोग किया गया है। इसके अलावा इस किले में भगवान शिव, हनुमान आदी के बेहतरीन और अति प्राचिन मंदिर विध्‍यमान है। इस किले में कुल पांच द्वार हैं और साथ साथ एक मुख्‍य दीवार है। इस किले में दृण और मजबूत पत्‍थरों का प्रयोग किया गया है जो अति प्राचिन काल से अपने यथा स्थिती में पड़े हुये है।
  • भानगड किले पर कालें जादूगर सिंघिया का शाप
  • भानगड़ किला जो देखने में जितना शानदार है उसका अतीत उतना ही भयानक है। आपको बता दें कि भानगड़ किले के बारें में प्रसिद्व एक कहानी के अनुसार भागगड़ की राजकुमारी रत्‍नावती जो कि नाम के ही अनुरूप बेहद खुबसुरत थी। उस समय उनके रूप की चर्चा पूरे राज्‍य में थी और साथ देश कोने कोने के राजकुमार उनसे विवाह करने के इच्‍छुक थे।
  • उस समय उनकी उम्र महज 18 वर्ष ही थी और उनका यौवन उनके रूप में और निखार ला चुका था। उस समय कई राज्‍यो से उनके लिए विवाह के प्रस्‍ताव आ रहे थे। उसी दौरान वो एक बार किले से अपनी सखियों के साथ बाजार में निकती थीं। राजकुमारी रत्‍नावती एक इत्र की दुकान पर पहुंची और वो इत्रों को हाथों में लेकर उसकी खुशबू ले रही थी। उसी समय उस दुकान से कुछ ही दूरी एक सिंघीया नाम व्‍यक्ति खड़ा होकर उन्‍हे बहुत ही गौर से देख रहा था।
  • सिंघीया उसी राज्‍य में रहता था और वो काले जादू का महारथी था। ऐसा बताया जाता है कि वो राजकुमारी के रूप का दिवाना था और उनसे प्रगाण प्रेम करता था। वो किसी भी तरह राजकुमारी को हासिल करना चाहता था। इसलिए उसने उस दुकान के पास आकर एक इत्र के बोतल जिसे रानी पसंद कर रही थी उसने उस बोतल पर काला जादू कर दिया जो राजकुमारी के वशीकरण के लिए किया था।
  • क्या हुआ राजकुमारी रत्नावती के साथ
  • राजकुमारी रत्‍नावती ने उस इत्र के बोतल को उठाया, लेकिन उसे वही पास के एक पत्‍थर पर पटक दिया। पत्‍थर पर पटकते ही वो बोतल टूट गया और सारा इत्र उस पत्‍थर पर बिखर गया। इसके बाद से ही वो पत्‍थर फिसलते हुए उस तांत्रिक सिंघीया के पीछे चल पड़ा और तांत्रिक को कुलद दिया, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गयी। मरने से पहले तांत्रिक ने शाप दिया कि इस किले में रहने वालें सभी लोग जल्‍द ही मर जायेंगे और वो दोबारा जन्‍म नहीं ले सकेंगे और ताउम्र उनकी आत्‍माएं इस किले में भटकती रहेंगी।
  • उस तांत्रिक के मौत के कुछ दिनों के बाद ही भानगडं और अजबगढ़ के बीच युद्व हुआ जिसमें किले में रहने वाले सारे लोग मारे गये। यहां तक की राजकुमारी रत्‍नावती भी उस शाप से नहीं बच सकी और उनकी भी मौत हो गयी। एक ही किले में एक साथ इतने बड़े कत्‍लेआम के बाद वहां मौत की चींखें गूंज गयी और आज भी उस किले में उनकी रू‍हें घुमती हैं।
  • किलें में सूर्यास्‍त के बाद प्रवेश निषेध
  • फिलहाल इस किले की देख रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है। किले के चारों तरफ आर्कियोंलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) की टीम मौजूद रहती हैं। एएसआई ने सख्‍त हिदायत दे रखा है कि सूर्यास्‍त के बाद इस इलाके किसी भी व्‍यक्ति के रूकने के लिए मनाही है। इस किले में जो भी सूर्यास्‍त के बाद गया वो कभी भी वापस नहीं आया है। कई बार लोगों को रूहों ने परेशान किया है और कुछ लोगों को अपने जान से हाथ धोना पड़ा है। इस ऐतिहासिक किले की यात्रा करने के लिए आप नीचे दिये गये लिंक पर‍ क्लिक करें और जानें कि आप कैसे इस जगह जा सकतें हैं।
  • किलें में रूहों का कब्‍जा
  • इस किले में कत्‍लेआम किये गये लोगों की रूहें आज भी भटकती हैं। कई बार इस समस्‍या से रूबरू हुआ गया है। एक बार भारतीय सरकार ने अर्धसैनिक बलों की एक टुकड़ी यहां लगायी थी ताकि इस बात की सच्‍चाई को जाना जा सकें, लेकिन वो भी असफल रही कई सैनिकों ने रूहों के इस इलाके में होने की पुष्ठि की थी। इस किले में आज भी जब आप अकेलें होंगे तो तलवारों की टनकार और लोगों की चींख को महसूस कर सकतें है।

  • एक और कहानी के मुताबिक यहां एक साधु रहते थे और महल के निर्माण के वक्त उन्होंने चेतावनी दी थी कि महल की ऊंचाई कम रखी जाए ताकि परछाई उनके पास तक ना आए। लेकिन बनाने वाले ने इस बात का ध्यान नहीं रखा और अपनी मर्जी से महल को बनाया। साधु ने गुस्से में श्राप दिया जिससे भानगढ़ तबाह हो गया। एक तीसरी कहानी के मुताबिक 1720 में भानगढ़ इसलिए उजड़ने लगा था क्योंकि यहां पानी की कमी थी। 1783 में एक अकाल पड़ा जिसने यहां रिहाइश को खत्म कर दिया और भानगढ़ पूरी तरह से उजड़ गया।
  • क्या सचमुच भूतिया है भानगढ़?
  • ये वो सवाल है जिसका कोई जवाब किसी के पास नहीं है। मानने वाले मानते हैं और जो नहीं मानते वो इसे कल्पना करार देते हैं। किवदंतियों पर भरोसा करें तो महल श्रापित है और आत्माओं का यहां वास है लेकिन जो नहीं मानते वो इसे वहम कहते हैं। सच चाहे जो हो लेकिन भानगढ़ को गूगल पर काफी सर्च किया जाता है और बड़ी तादाद में लोग यहां आते 

रामोजी फिल्म सिटी हैदराबाद Most Haunted place in india



दोस्तों आज मै आपको बताने वाला हूँ एक और भुतीया जगह के बारे में जो की भरत के हैदराबाद में है उसका नाम है रामोजी फिल्म सिटी तो चलीये दोस्तों जानते है की आखिर ऐसा क्या हुआ था रामोजी फिल्म सिटी में जिसकी वजह से इस जगह को इंडिया के भुतीया जगह में शामिल कर लिया है तो जानते है रामोजी फिल्म सिटी के बारे में .
                                  रामोजी फिल्म


नोट: यह स्टोरी पूरी तरह किंवदंतियों पर आधारित है। हम किसी तरह के अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देना चाहते।

हैदराबाद का रामोजीराव फिल्म सिटी युद्ध भूमि पर बसा हुआ है। सैनिकों की मृत आत्माएं भूत बन चुके हैं। बताया जाता है कि फिल्म शूटिंग के दौरान कई असाधाराण शक्तियां दिख जाती हैं। यह स्थान सैनिकों का कब्रिस्तान है। यहां उनकी आत्माएं आज भी भटकती हैं। इनकी वजह से कई लोग घायल हो चुके हैं। ये सारी घटनाएं औपचारिक या अनौपचारिक रूप से व्यापार की वजह से सामने नहीं आ पाती हैं।
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रामोजी फिल्म सिटी में कई होटल हैं जो डरावनी हलचलों की वजह से जाने जाते हैं. इन भूतिया हलचलों की ज्यादातर शिकार औरतें और लड़कियां बनती हैं. यहां लोगों ने बताया कि कोई अनदेखी शक्ति लड़कियों के कपड़े खींचती है. लोगों का कहना है कि शूटिंग के दौरान कई बार लाइट मैन को ऊपर से कोई धक्के देकर गिरा चुका है जिससे उन्हें गहरी चोटें लगी हैं.
रामोजी

यहाँ निज़ाम सुल्तानों ने इतिहास की कुछ क्रूरतम लड़ाईया लड़ी थी। इस फिल्म सिटी, खासकर फिल्म सिटी में स्तिथ होटलों को पारलौकिक गतिविधियों का केंद्र माना जाता है। यहाँ पर आए दिन कुछ ना कुछ ऐसा होता रहता है जो की पारलौकिक ताकतों का एहसास कराता है।  जैसे की शूटिंग के वक़्त लाइट का छत से गिर जाना, ऊपर बैठे लाइट मेन को अदृश्य ताकतों द्वारा नीचे गिरा देना (ऐसा कई बार हो चुका है और कई मौको पर तो लाइट मेन गंभीर से घायल हो चुके है), होटल में छोड़े गए भोजन का वापस लौटने पर इधर उधर बिखरा मिलना, ड्रेसिंग के कांच पर उर्दू में कुछ अजीब सा लिखा हुआ मिलना। माना जाता है की यहां पर मरे हुए सैनिको की आत्माए भटकती है। एक अजीब बात यह है की ये आत्माए औरतो को ज्यादा परेशान करती है। जैसे की जब वो ड्रेसिंग रूम में होती है तो वह अजीब सी परछाई दिखाई देती है , जब वो नहाती है तो उनके बाथरूम बाहर से लॉक हो जाते है। इनसे छुटकारा पाने के कई उपाय किये जा चुके है पर अब तक कोई विशेष फायदा नहीं हुआ है।

दोस्तों आपको ये कहाणी कैसी लगी हमे कॉमेंट्स में जरूर बताये 

कहाणी शनिवारवाडा फोर्ट की shanivarvada haunted story in hindi

शनिवार वाडा फोर्ट, महाराष्ट्र के पुणे में स्तिथ है। इस किले की नीव शनिवार के दिन रखी गई थी इसलिए इसका नाम शनिवार वाडा पड़ा। यह फोर्ट अपनी भव्यता और ऐतिहासिकता के लिए प्रसिद्ध है।


  • शनिवार वाडा फोर्ट – इंडिया के टॉप हॉन्टेड प्लेस में है शामिल 
  • Shanivarwada
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  • Shaniwar Wada Fort Story & History in Hindi : शनिवार वाडा फोर्ट, महाराष्ट्र के पुणे में स्तिथ है। इस किले की नीव शनिवार के दिन रखी गई थी इसलिए इसका नाम शनिवार वाडा पड़ा। यह फोर्ट अपनी भव्यता और ऐतिहासिकता के लिए प्रसिद्ध है।  इसका निर्माण 18 वि शताब्दी में  मराठा साम्राज्य पर शासन करने वाले पेशवाओं ने करवाया था। यह किला 1818 तक पेशवाओं की प्रमुख गद्दी रहा था।  लेकिन इस किले के साथ एक काला अध्याय भी जुड़ा है। इस किले में 30 अगस्त 1773 की रात को 18 साल के  नारायण राव, जो की मात्र 16 साल की उम्र में मराठा साम्राज्य के पांचवे पेशवा बन थे, की षड्यंत्रपूर्वक ह्त्या कर दी गई थी। जब हत्यारे उसकी ह्त्या करने आये तो उसने ख़तरा भांप कर अपने काका (चाचा)  कक्ष की और “Kaka Mall Vachva” (Uncle Save Me) कहते हुए दौड़ लगाई पर बदकिस्मती  वहाँ पहुंचने से पहले मारा गया।  कहते है की किले में उसी बच्चे नारायण राव की आत्मा आज भी भटकती है और उसके द्वारा बोले गए आखिरी शब्द “काका माला वचाव” आज भी किले में सुनाई देते है। इसलिए इस किले को इंडिया के टॉप मोस्ट हॉन्टेड प्लेस  (Top most haunted place of India) में शामिल किया जाता है। 



Shanivarvada

महल के बारे में स्थानीय लोगो का मानना है कि शनिवार वादा का किला पूर्णिमा की रात को सबसे ज्यादा प्रेत बाधित माना जाता है | इसके पीछे एक कहानी है कि उस समय में पेशवाओ को राज था और राजा अक्सर राजगद्दी के लिए किसी को भी मारने में नहीं हिचकते थे |


  • शनिवार वाडा फोर्ट – इंडिया के टॉप हॉन्टेड प्लेस में है शामिल
  • शनिवार वाडा फोर्ट, महाराष्ट्र के पुणे में स्तिथ है। इस किले की नीव शनिवार के दिन रखी गई थी इसलिए इसका नाम शनिवार वाडा पड़ा। यह फोर्ट अपनी भव्यता और ऐतिहासिकता के लिए प्रसिद्ध है।  इसका निर्माण 18 वि शताब्दी में  मराठा साम्राज्य पर शासन करने वाले पेशवाओं ने करवाया था। यह किला 1818 तक पेशवाओं की प्रमुख गद्दी रहा था।  लेकिन इस किले के साथ एक काला अध्याय भी जुड़ा है। इस किले में 30 अगस्त 1773 की रात को 18 साल के  नारायण राव, जो की मात्र 16 साल की उम्र में मराठा साम्राज्य के पांचवे पेशवा बन थे, की षड्यंत्रपूर्वक ह्त्या कर दी गई थी। जब हत्यारे उसकी ह्त्या करने आये तो उसने ख़तरा भांप कर अपने काका (चाचा)  कक्ष की और “Kaka Mall Vachva” (Uncle Save Me) कहते हुए दौड़ लगाई पर बदकिस्मती  वहाँ पहुंचने से पहले मारा गया।  कहते है की किले में उसी बच्चे नारायण राव की आत्मा आज भी भटकती है और उसके द्वारा बोले गए आखिरी शब्द “काका माला वचाव” आज भी किले में सुनाई देते है। इसलिए इस किले को इंडिया के टॉप मोस्ट हॉन्टेड प्लेस  (Top most haunted place of India) में शामिल किया जाता है। आइये अब हम आपको इस किले के निर्माण से लेकर इस पर अंग्रेजो के अधिकार तक तथा नारायण राव की षड्यंत्रपूर्वक ह्त्या पर विस्तार से बताते है।
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शनिवार वाडा फोर्ट का निर्माण :

  • इस किले की नींव पेशवा बाजीराव प्रथम ने 10 जनवरी 1730, शनिवार को रखी थी। इस किले का उदघाटन 22 जनवरी 1732 को किया गया था। हालांकि इसके बाद भी किले के अंदर कई इमारते और एक लोटस फाउंटेन का निर्माण हुआ था। शनिवार वाडा फोर्ट का निर्माण राजस्थान के ठेकेदारो ने किया था जिन्हे की काम पूर्ण होने के बाद पेशवा ने नाईक (Naik) की उपाधि से नवाज़ा था। इस किले में लगी टीक की लकड़ी जुन्नार (Junnar) के  जंगलो से, पत्थर चिंचवाड़ (Chinchwad) की खदानों से तथा चुना जेजुरी (Jejuri) की खदानों से लाया गया था। इस महल में 27 फ़रवरी 1828 को अज्ञात कारणों से भयंकर आग लगी थी।  आग को पूरी तरह बुझाने में सात दिन लग गए थे। इस से किले परिसर में बनी कई इमारते पूरी तरह नष्ट हो गई थी। उनके अब केवल अवशेष बचे है।  अब यदि हम इस किले की संरचना की बात करे तो किले में प्रवेश करने के लिए पांच दरवाज़े है
  • Shanivarvada

  • 1 . दिल्ली दरवाज़ा  Dilli Darwaza (Delhi Gate) :
  • यह इस किले का सबसे प्रमुख गेट है जो  उत्तर दिशा  दिल्ली  तरफ खुलता है इसलिए इसे दिल्ली दरवाज़ा कहते है। यह इतना ऊँचा और चौड़ा की है पालकी सहित हाथी आराम से आ जा सकते है। हमले के वक़्त हाथियों से इस गेट को बचाने लिए इस गेट के दोनों पलड़ो में 12 इंच लम्बे 72 नुकीले कीले लगे हुए है जो कि हाथी के माथे तक की ऊँचाई पर है। दरवाज़े के दाहिने पलड़े में एक छोटा सा गेट और है जो की सैनिको के आने जाने के काम आता था।

  • 5. जंभूल दरवाज़ा या नारायण दरवाज़ा Jambhul Darwaja or Narayan Darwaja (Narayan’s Gate) :
  • ये दरवाज़ा दक्षिण दिशा में खुलता है। ये दरवाज़ा मुख्यतः दासियों के महल आने जाने के काम आता था। नारायण राव पेशवा की ह्त्या के बाद उसकी लाश के टुकड़ो को इसी रास्ते से किले के बाहर ले जाया गया था इसलिए इसे नारायण दरवाज़ा भी कहा जाता है।

  • अब यदि किले के अंदर की इमारतों की बात करे तो इस किले में मुख्यतः तीन महल थे और तीनो ही 1828 में लगी आग में नष्ट हो गए। अब केवल उनके अवशेष है। इसके अलावा किले में एक 7 मंजिला ऊंची इमारत भी थी जिसकी सबसे ऊंची चोटी से 17 किलो मीटर दूर, आलंदी में स्थ्ति संत ज्ञानेश्वर के मंदिर का शिखर दिखाई देता था। यह इमारत भी आग में नष्ट हो गई थी। अब किले में कुछ छोटी इमारते ही सही सलामत है।
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  • लोटस फाउंटेन (Lotus Fountain) :
  • इस किले मुख्य आकर्षण कमल की आकार का एक फाउंटेन (फव्वारा) है। जिसे की हज़ारी करंजे कहते है। लेकिन इस फाउंटेन से भी एक दुखद इतिहास जुड़ा है। इसमें गिरकर घायल होने से एक राजकुमार की मृत्यु हो गई थी।

  • नारायण राव की हत्या :
  • पेशवा नाना साहेब के तीन पुत्र थे विशव राव, महादेव राव और नारायण राव।  सबसे बड़े पुत्र विशव राव पानीपत की तीसरी लड़ाई में मारे गए थे। नाना साहेब की मृत्यु के उपरान्त महादेव राव को गद्दी पर बैठाया गया। पानीपत की तीसरी  लड़ाई में महादेव राव पर ही रणनीति बनाने की पूरी जिम्मेदारी थी लेकिन उनकी बनाई हुई कुछ रणनीतियां बुरी तरह विफल रही थी फलस्वरूप इस युद्ध में मराठों की बुरी तरह हार हुई थी।  कहते है की इस युद्ध में मराठो के 70000 सैनिक मारे गए थे।  महादेव राव युद्ध में अपनी भाई की मृत्यु और मराठो की हार के लिए खुद को जिम्मेदार मानते थे।  जिसके कारण वो बहुत ज्यादा तनाव में रहते थे और इसी कारण गद्दी पर बैठने के कुछ दिनों बाद ही उनकी बिमारी से मृत्यु हो गई।
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  • उनकी मृत्यु के पश्चात मात्र 16 साल की उम्र में नारायण राव पेशवा बने।  नाना साहेब के एक छोटे भाई रघुनाथ राव भी थे जिन्हे की सब राघोबा कहते थे। नारायण राव को पेशवा बनाने से काका (चाचा) राघोबा और काकी (चाची) अनादीबाई खुश नहीं थे। वो खुद पेशवा बनना चाहते थे उनको एक बालक का पेशवा बनना पसंद नहीं आ रहा था। दूसरी तरफ नारायण राव भी अपने काका को ख़ास पसंद नहीं करते थे क्योकि उन्हें लगता था की उनके काका ने एक बार उनके बड़े भाई महादेव राव की ह्त्या का प्रयास किया था।  इस तरह दोनों एक दूसरे को शक की नज़र से देखते थे।  हालात तब और भी विकट हो गए जब दोनों के सलाहकारों ने दोनों को एक दूसरे के विरुद्ध भड़काया। इसका परिणाम यह हुआ की नारायण राव ने अपने काका को घर में ही नज़रबंद करवा दिया।
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  • इससे अनादि बाई और भी ज्यादा नाराज़ हो गई।  उधर राघोबा ने नारायण राव को काबू में करने का एक उपाय सोचा।  उनके साम्राज्य में ही भीलों का एक शिकारी कबीला रहता था जो की गार्दी (Gardi) कहलाते थे।  वो बहुत ही मारक लड़ाके थे। नारायण राव के साथ उनके सम्बन्ध खराब थे लेकिन राघोबा को वो पसंद करते थे।  इसी का फायदा उठाते हुए राघोबा ने उनके मुखिया सुमेर सिंह गार्दी को एक पत्र भेजा जिसमे उन्होंने लिखा ‘नारायण राव ला धारा’ जिसका मतलब था नारायण राव को बंदी बनाओ। लेकिन अनादि बाई को यहाँ एक खूबसूरत मौक़ा नज़र आया और उसने पत्र का एक अक्षर बदल दिया और कर दिया ‘नारायण राव ला मारा’  जिसका मतलब था नारायण राव को मार दो।

  • पत्र मिलते ही गार्दियों के एक समूह ने रात को घात लगाकर महल पर हमला कर दिया। वो रास्ते की हर बाधा को हटाते हुए नारायण राव के कक्ष की और बढे। जब नारायण राव ने देखा की गार्दी हथियार लेकर खून बहाते हुए उसकी तरफ आ रहे है तो वो अपनी जान बचाने के लिए अपने काका के कक्ष की और “काका माला वचाव” (काका मुझे बचाओ) कहते हुए भागा।  लेकिन वह पहुँचने से पहले ही वो पकड़ा गया और उसके टुकड़े टुकड़े कर दिए गए।
  • कहते है की रामोजी फिल्म सिटी में कई होटल हैं जो डरावनी हलचलों की वजह से जाने जाते हैं. इन भूतिया हलचलों की ज्यादातर शिकार औरतें और लड़कियां बनती हैं. यहां लोगों ने बताया कि कोई अनदेखी शक्ति लड़कियों के कपड़े खींचती है. लोगों का कहना है कि शूटिंग के दौरान कई बार लाइट मैन को ऊपर से कोई धक्के देकर गिरा चुका है जिससे उन्हें गहरी चोटें लगी हैं.

  1. तो आपको हमारी जानकारी कैसी लगी हमे कॉमेंट में जरूर बताये 

कुलधारा एक शापित गांव indias most haunted place

                        
दोस्तो में आज आप को ऐसे गाव के बारें में बाताने वाला हू जिसका नाम कुलधारा है. यह कहाणी है एक शाप  कि यह कहाणी है एक लडकी कि ओर यह कहाणी है पालीवाल ब्राम्ह्णो कि. कुलधारा एक ऐसा गाव है जो एक शाप के कारण रातोरात उजड गया ओर आज तक नही बस सका. कुलधारा गाव जैसलमेर से करीब १४ किलोमीटर दूर है. इस गाव को पालीवाल ब्राम्हण समाज ने सरस्वती नदी के किनारे बसाया था. तब खुशीओसे भरपूर होनेवाला गाव आज विराण है. आज ये गाव विरान पडा है. शाम होणे के बाद यहा कोई नही जाता. ऐसा क्या हुआ था इस गाव में कि आज तक नही बस सका कुलधारा गाव तो चलिये देखते है कुलधारा कि कहाणी               
Haunted place
    सन १८२५ में जैसलमेर पर राजपूत सामंत सरदार राज करते थे. ओर उस राज्य का दिवान सलीम सिंह था. सलीम सिंह कुलधारा के मुखिया कि बेहद खुबसुरत बेटी के प्यार में पद गया. ओ उससे शादी करणा चाहता था. लेकिन मुखिया अपनी बेटी कि शादी उससे नही करणा चाहते थे. इस वजह से सलीम सिंह भारी मात्र में कर लागणे कि धमकी गाव वालो को देणे लागा इस कारण पालीवाल ब्राम्हनओने रक्षा बंधन के दिन हि आसपास के ८४ गाव के लोगो ने साथ देते हुये गाव रातोरात खाली कर दिया ओर दुसरी जगह चाले गये. ओर जाते जाते कुलधारा गाव को शाप देते गये कि ये गाव फिर कभी नही बस सकेगा ओर ब्राम्हण तो चले गये लेकिन आज भी उनके शाप का असर है आज भी रात होणे के बाद वहा कोई नही जाता. वाहा के मकान आज भी विरान पडे है कुलधारा गाव को भूतो का गाव नाम से भी जाना जाता है पालीवाल ब्रह्मणो के जाने के बाद से ये गाव रुहानी ताकतों के कब्जे में है वक्त के साथ साथ ८२ गाव दोबारा बस सके लेकिन दो गाव तमाम कोशिशोके बाद भी नही बस सके ओह है कुलधारा ओर दुसरा है खबा अब ये दोनो गाव  भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है.         
Haunted place
                                  रात में कुलधारा ग में अजीबअजीब सी आवाजे सुनी देती है जो पालीवाल ब्रह्मणो के दर्द कि कहाणी बयान करती है गांव के कुछ मकान हैं, जहां रहस्यमय परछाई अक्सर नजरों के सामने आ जाती है। दिन की रोशनी में सबकुछ इतिहास की किसी कहानी जैसा लगता है, लेकिन शाम ढलते ही कुलधरा के दरवाजे बंद हो जाते हैं और दिखाई होता है रूहानी ताकतों का एक रहस्यमय संसार। लोग कहते हैं, कि रात के वक्त यहां जो भी आया वो हादसे की शिकार हो गया।कुछ वक्त पहले कुलधरा के रहस्य की पड़ताल करने वाली एक टीम भी ऐसे ही हादसे का शिकार हुई थी शाम के वक्त उनका ड्रोन कैमरा आसमान से गांव की तस्वीरें ले रहा था लेकिन उस बावड़ी के ऊपर आते ही वो कैमरा हवा में गोते लगाता हुआ जमीन पर आ गिरा। जैसे कोई था, जिसे वो कैमरा मंजूर न हो। ये सच है कि कुलधरा से हजारों परिवारों का पलायन हुआ, ये भी सच है कि कुलधरा में आज भी राजस्थानी संस्कृति की झलक मिलती हैं। राजस्थान पुरातत्व विभाग के दस्तावेज़ भी शर्मा के कथन की पुष्टि करते हुए प्रतीत होते हैं, “कालचक्र का एक और प्रतिकूल दौर आया और ब्राह्मण समाज को तत्कालीन जैसलमेर रियासत से मजबूर होकर अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए सन 1825 में सभी आबाद गांवों को एक ही दिन में छोड़ना पड़ा.
Haunted place
स्वाभिमान की रक्षा के लिए सन 1825 में सभी आबाद गांवों को एक ही दिन में छोड़ना पड़ा.
ऐसा माना जाता है की पालीवाल जैसलमेर से निकलकर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में बस गए. उन्होंने जो गाँव छोड़े उनमें से अधिकतर कुछ नए नामों के साथ फिर से आबाद हो गए. पारानोर्मल सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के गौरव तिवारी जो 17 से ज़्यादा बार कुलधरा और खाबा जा चुके हैं, बताते हैं कि उन्होंने वहां अपने इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स पर आत्माओं की उपस्थिति दर्ज की. लेकिन जैसलमेर विकास समिति के द्वारपाल पद्माराम इसका ज़ोरदार खंडन करते हैं. दिल्ली से आई भूत प्रेत व आत्माओं पर रिसर्च करने वाली पेरानार्मल सोसायटी की टीम ने कुलधरा(Kuldhara) गांव में बिताई रात। टीम ने माना कि यहां कुछ न कुछ असामान्य जरूर है। टीम के एक सदस्य ने बताया कि विजिट के दौरान रात में कई बार मैंने महसूस किया कि किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा, जब मुड़कर देखा तो वहां कोई नहीं था। पेरानॉर्मल सोसायटी के उपाध्यक्ष अंशुल शर्मा ने बताया था कि हमारे पास एक डिवाइस है जिसका नाम गोस्ट बॉक्स है। इसके माध्यम से हम ऐसी जगहों पर रहने वाली आत्माओं से सवाल पूछते हैं। कुलधरा में भी ऐसा ही किया जहां कुछ आवाजें आई तो कहीं असामान्य रूप से आत्माओं ने अपने नाम भी बताए। शनिवार चार मई की रात्रि में जो टीम कुलधरा गई थी उनकी गाडिय़ों पर बच्चों के हाथ के निशान मिले। टीम के सदस्य जब कुलधरा गांव में घूमकर वापस लौटे तो उनकी गाडिय़ों के कांच पर बच्चों के पंजे के निशान दिखाई दिए। (जैसा कि कुलधरा(Kuldhara) गई टीम के सदस्यों ने मीडिया को बताया )                                                   
Haunted place
        स्थानिक लोगो के अनुसार जब पालीवाल गाँव को छोड़कर जा रहे थे तब उन्होंने इस जगह पर श्राप भी डाला था की कोई भी दूसरा व्यक्ति इस गाँव पर कब्ज़ा नही कर सकता। इसके बाद जिन लोगो ने भी यहाँ बसना चाहा उन्हें असाधारण गतिविधियों का सामना करना पड़ा और इसी वजह से यह गाँव वीरान का वीरान ही रहा।
      इसके बाद धीरे-धीरे गाँव ने प्रेतवाधित गाँव के रूप में अपनी पहचान बना ली और इससे बहुत से पर्यटक इसकी तरफ आकर्षित होने लगे। गाँव के आस-पास के स्थानिक लोगो का इन प्रेतवाधित कहानियो पर जरा भी भरोसा नही है लेकिन फिर भी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए वे ऐसी कहानियो का प्रचार-प्रसार करते रहते है।
2006 में वनस्पति अध्ययन के लिए सरकार ने यहाँ जुरैसिक कैक्टस पार्ककी स्थापना की।
2010 में भारतीय असाधारण सोसाइटी के गौरव तिवारी ने इस जगह पर असाधारण गतिविधियों को देखने का दावा भी किया है। सोसाइटी के 18 सदस्यों के समूह ने 12 दुसरे लोगो के साथ गाँव में पूरी एक रात गुजारी थी। उन्होंने दावा किया है की उन्हें रात में घुमती हुई परछाई, डरावनी आवाज, बोलती हुई स्त्रियाँ और दूसरी असाधारण गतिविधियाँ देखने मिली।